अहमियत रिश्तों की

 

एक दिन भी बिना जिनके , रह नहीं सकते थे हम,

वो माँ -जाये ज़िंदगी में अपनी, मसरूफ हो जाते हैं।  

 

छोटी-छोटी सी बातें, छिपा नहीं पाते थे हम,

अब बड़ी-बड़ी मुश्किलों से भी, अकेले जूझते जाते हैं। 

 

ऐसा नहीं कि ज़िंदगी में, उनकी अहमियत नहीं कोई,

पर अपनी तकलीफ़ें न जाने क्यूँ, उन सबसे छिपाए जाते हैं। 

 

रिश्ते नये ज़िंदगी से, जुड़ते चले जाते हैं मग़र ,

बचपन के वो रिश्ते, कहीं दूर खो जाते हैं। 

 

खेल-खेल में रूठना-मनाना, हर दिन की बात थी,

अब छोटे से गिले -शिकवे, दिलों को दूर कर जाते हैं। 

 

सब अपनी ही उलझनों में, उलझ कर रह गए हैं यूँ ,

कैसे बताएं उन्हें हम, वो कितना याद आते हैं। 

 

वो, जिन्हें एक पल भी, भूल नहीं पाते थे हम,

बड़े होकर वही भाई-बहन, क्यूँ हमसे दूर हो जाते हैं। 

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